अज़ान के बाद की दुआ और कुछ हदीसें | Azan ke baad ki dua aur kuch hadees.

 अस्सलामुअलैकुम मेरे भाइयों और बहनों उम्मीद करता हूंँ सब खैरियत से होंगे, आज हम इस पोस्ट में जानेंगे कि अज़ान का मतलब क्या है, अज़ान के दौरान क्या पढ़ना चाहिए, और अज़ान के बाद की दुआ क्या है, और अज़ान पर कुछ हदीसें कौन कौन सी हैं।


    1. Azan ka matlab | अज़ान का मतलब

    अज़ान शब्द का मतलब होता है 'पुकारना' तो जब मुअज़्ज़िन (अज़ान देने वाला) अज़ान देता है तो वह लोगों को नमाज़ की तरफ पुकारता है और उन शब्दों का मतलब होता है -

    1.अल्लाहु अकबर (4 बार)

       अल्लाह सब से बड़ा है।


    2.अश-हदू अल्ला-इलाहा इल्लल्लाह (2 बार)  

       मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा ओर कोई माबूद (इबादत के काबिल) नहीं।


    3.अश-हदू अन्ना मुहम्मदर रसूलुल्लाह (2 बार)

       मैं गवाही देता हूं कि मुहम्मद (सल्ल.) अल्लाह के रसूल हैं।


    4. हय्या 'अलस्सलाह (2 बार)

       आओ इबादत की ओर।


    5.हय्या 'अलल्फलाह (2 बार)

       आओ कामयाबी की ओर।


    6.अस्‍सलातु खैरूं मिनन नउम (2 बार) [सिर्फ फजर की नमाज़ में]

        नमाज़ नींद से बहतर है।


    7.अल्लाहु अकबर (2 बार)

       अल्लाह सब से बड़ा है।


    8.ला इलाहा इल्लल्लाह (1 बार)

       अल्लाह के सिवा ओर कोई इबादत के काबिल नहीं।


    2. अज़ान के दौरान क्या पढ़ा जाता है?

    सबसे पहली बात यह है कि एक अल्लाह के बंदे या बंदी को हर वह बात दोहरानी चाहिए जो मुअज़्ज़िन (अज़ान देने वाला) कहता है,

    सिवाय इसके कि जब वह कहता है-


    حَيَّ عَلَى الصَّلاَةِ وَحَيَّ عَلَى الْفَلَاحِ 

    हय्या अलस्सलाह व हय्या अलल्फलाह

    मतलब 

    आओ नमाज की तरफ,आओ कामयाबी की तरफ

    इसके बजाय कहना चाहिए-

    لاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِاللّٰهِ 

    ला हौला व ला कुव्वता इल्ला बिल्लाह 

    मतलब

    अल्लाह के सिवा कोई ताकत कोई कुवत नहीं।


    और जब मुअज़्ज़िन (अज़ान देने वाला) ईमान का ऐलान करता है तो उसके तुरंत बाद कहना चाहिए-

    وَأَنَا أَشْهَدُ أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللّٰهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيْكَ لَهُ وَأَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُوْلُهُ، رَضِيْتُ بِاللّٰهِ رَبَّاً، وَبِمُحَمَّدٍ رَسُوْلاً، وَبِالْإِسْلاَمِ دِيْنَاً 

    व अना अश-हदू अन् ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीका लहु व अन्ना मुहम्मदन अबदुहु व रसूलुहु, रज़ीतु बिल्लाहि रब्बन, वबि मुहम्मदिन रसूलन, वबिल इस्लामि दीनन।

    मतलब

    और मैं गवाही देता या देती हूंँ की अल्लाह के सिवा कोई माबूद (इबादत के लायक) नहीं और वह एक है उसका कोई साथी नहीं और मुहम्मद(सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) उनके बंदे और उनके रसूल हैं। मैं राजी हूँँ कि अल्लाह मेरे रब हैंं, मुहम्मद (सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम) मेरे पैगंबर (रसूल) हैंं, और इस्लाम मेरा दीन (धर्म) है।


    3. Azan ke baad ki dua | अज़ान के बाद की दुआ 

    अज़ान खत्म होने के तुरंत बाद हमें अल्लाह के नबी पर सलातो-सलाम भेजना चाहिए यानी दुरूद शरीफ़ पढ़ना चाहिए।

    और उसके बाद यह दुआ पढ़नी चाहिए-

    Azan ke baad ki dua, azan ki dua, azan dua

    अरबी:- 

    اللّٰهُمَّ رَبَّ هَذِهِ الدَّعْوَةِ التَّامَّةِ، وَالصَّلاَةِ الْقَائِمَةِ، آتِ مُحَمَّدًا الْوَسِيْلَةَ وَالْفَضِيْلَةَ، وَابْعَثْهُ مَقَامَاً مَحمُوْداً الَّذِيْ وَعَدْتَهُ، إِنَّكَ لَا تُخْلِفُ الْمِيْعَادَ

    अल्लाहुम्मा रब्बा हाज़िहिद-दावतित-ताम्मह' वस-सलातिल काइमह' आति मुहम्मद-निल-वसीलता वल-फज़ीलह' वब-असहु मकामम्-महमूदा-निल्लज़ी वअदतहु' इन्नका ला तुखलि-फुल मीआद।

    हिंदी:-

    ऐ अल्लाह, इस बेहतरीन पुकार और कायम नमाज़ के रब, मुहम्मद(सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम) को *अल वसीला(जन्नत का एक मक़ाम) और *अल फज़ीला(सबसे ऊँँचा दर्जा) अता करें और उन्हें इज्जतशुदा मक़ाम (प्रशंसनीय पद) पर पहुंँचाएं जिसका आपने उन्हें वादा किया है, और बेशक आप अपना वादा कभी नहीं तोड़ते हैं।


    4. अज़ान पर कुछ हदीसें

    1. अनस बिन मालिक (रजि.) से रिवायत है:

    रसूलुल्लाह (सल्ल.) ने फरमाया: "अज़ान और *इकामत के बीच मांगी गई दुआ रद्द नहीं होती"

    *इकामत - दूसरी अज़ान जब नमाज खड़ी होती है।

    जामियत त्रिमिज़ी 212

    2. अबु हुरैरा (रजि.) से रिवायत है:

    रसूलुल्लाह (सल्ल.) ने फरमाया: जब नमाज़ के लिए अज़ान दी जाती है दो शैतान अपनी ऐडियो तले हवा छोड़ते जाता है ताकि अज़ान ना सुन सके, और जब मुअज़्ज़िन अज़ान खत्म करता है तो वह वापस आ जाता है; और जब इकामत बोली जाती है तो फिर वह अपनी ऐडियो तले भाग जाता है और जब खत्म होती है तो फिर वापस आ जाता है और इबादत करने वाले बंदे को वह बातें याद दिलाता है जो उसे नमाज़ से पहले याद नहीं थी जब तक कि वह भूल जाता है कि उसने कितनी रकात नमाज अदा की। अबु सलमा बिन अब्दुर्-रहमान फरमाते हैं,"कोई शख्स अगर भूल जाए कि उसने कितनी रकात नमाज अदा करी है तो उसे दो सजदे बैठे-बैठे सजदा सहू के कर लेने चाहिए"।

    सहीह बुखारी 1222

     3.अब्दुल्लाह बिन अबी कतादा से रिवायत है:

    मेरे अब्बू ने फरमाया,"एक रात हम रसूल अल्लाह (सल्ल.) के साथ सफर में थे तो कुछ लोगों ने कहा कि हम चाहते हैं कि इस रात के आखिरी पहर में रसूल अल्लाह (सल्ल.) हमारे साथ आराम फरमा ले, उन्होंने फरमाया,"मुझे डर है कि कहीं तुम सोते रह जाओ और फज़र की नमाज में छोड़ दो", फिर बिलाल ने फरमाया कि मैं आप सभी को उठा दूंगा तो सब सो गए और बिलाल अपनी राहिला पर कमर टिका के आराम फरमाने लगा लेकिन उस पर भी नींद का गलबा तारी हो गया और वह भी सो गया। रसूल अल्लाह (सल्ल.) की आंख खुली जब सूरज का एक किनारा निकल चुका था, तो उन्होंने फरमाया,"ऐ बिलाल! क्या हुआ तेरी बात का" फिर बिलाल ने कहा कि मैं ऐसी नींद पहले कभी नहीं सोया, तो रसूल अल्लाह (सल्ल.) ने फरमाया,"अल्लाह जब चाहता है तुम्हारी रूह को अपने कब्जे में ले लेता है और जब चाहता है उसे छोड़ देता है" ऐ बिलाल! खड़े हो और नमाज के लिए अज़ान दो तब रसूल अल्लाह (सल्ल.) ने वज़ू किया और जब सूरज पूरा निकल गया और पूरा रोशन हो गया तब वह खड़े हुए और उन्होंने नमाज़ अदा की।

    सहीह बुखारी 595

    दुरुद शरीफ़ हिंदी में 


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