5. हदीस ए कुदसी
सहीह
सहीह
अरबी:-
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:قَالَ اللَّهُ تَبَارَكَ وَتَعَالَى: أَنَا أَغْنَى الشُّرَكَاءِ عَنْ الشِّرْكِ؛ "مَنْ عَمِلَ "عَمَلًا أَشْرَكَ مَعِي غَيْرِي، تَرَكْتُهُ وَشِرْكَهُرواه مسلم (وكذلك ابن ماجه)
عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، قَالَ: قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:
قَالَ اللَّهُ تَبَارَكَ وَتَعَالَى: أَنَا أَغْنَى الشُّرَكَاءِ عَنْ الشِّرْكِ؛ "مَنْ عَمِلَ "عَمَلًا أَشْرَكَ مَعِي غَيْرِي، تَرَكْتُهُ وَشِرْكَهُ
رواه مسلم (وكذلك ابن ماجه)
हिंदी:-
अबू हुरैरा(रज़िअल्लाहु अन्हु) ने बयान किया कि रसूल अल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
अल्लाह(तबारक व तआला) कहते हैं:- मैं खुद ही इतना काफी हूंँ कि मुझे किसी साथी(शरीक) की जरूरत नहीं, तो अगर कोई शख्स किसी कर्म(अमल) को मेरे साथ साथ किसी और के लिए भी करता है तो मैं उस कर्म को छोड़ देता हूंँ उस पर जिसे वह मेरा शरीक(साथी) ठहराता है।यानी कहने का मतलब यह है कि अल्लाह सुब्हानहु व तआला ऐसे कर्म(अमल) को कबूल नहीं करते जो अल्लाह के साथ-साथ किसी और के लिए भी किया गया हो या अल्लाह के सिवा किसी और के लिए किया गया हो।
यह मुस्लिम और इसी तरह से इब्न माजह ने बयान की है।
अल्लाह(तबारक व तआला) कहते हैं:- मैं खुद ही इतना काफी हूंँ कि मुझे किसी साथी(शरीक) की जरूरत नहीं, तो अगर कोई शख्स किसी कर्म(अमल) को मेरे साथ साथ किसी और के लिए भी करता है तो मैं उस कर्म को छोड़ देता हूंँ उस पर जिसे वह मेरा शरीक(साथी) ठहराता है।
यह मुस्लिम और इसी तरह से इब्न माजह ने बयान की है।
और अल्लाह बेहतर जानते हैं।
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