[14] हदीस ए कुदसी || अल्लाह के जिक्र की मजलिस

 

[14] हदीस ए कुदसी | अल्लाह के जिक्र की मजलिस

सहीह

अरबी:-

عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُ، عَنْ النَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ قَالَ:

إِنَّ لِلَّهِ تَبَارَكَ وَتَعَالَى مَلَائِكَةً سَيَّارَةً فُضُلًا(1)، يَتَتَبَّعُونَ مَجَالِسَ الذِّكْرِ، فَإِذَا وَجَدُوا مَجْلِسًا فِيهِ ذِكْرٌ، قَعَدُوا مَعَهُمْ، وَحَفَّ بَعْضُهُمْ بَعْضًا بِأَجْنِحَتِهِمْ، حَتَّى يَمْلَأُوا مَا بَيْنَهُمْ وَبَيْنَ السَّمَاءِ الدُّنْيَا، فَإِذَااْنْصَرَفُوا عَرَجُوا وَصَعِدُوا إِلَى السَّمَاءِ، قَالَ (2) : فَيَسْأَلُهُمْ اللَّهُ عَزَّ وَجَلَّ وَهُوَ أَعْلَمُ بِهِمْ: مِنْ أَيْنَ جِئْتُمْ؟ فَيَقُولُونَ: جِئْنَا مِنْ عِنْدِ عِبَادٍ لَكَ فِي الْأَرْضِ، يُسَبِّحُونَكَ وَيُكَبِّرُونَكَ وَيُهَلِّلُونَكَ وَيَحْمَدُونَكَ وَيَسْأَلُونَكَ، قَالَ: وَمَا يَسْأَلُونِي؟ قَالُوا يَسْأَلُونَكَ جَنَّتَكَ، قَالَ: وَهَلْ رَأَوْا جَنَّتِي؟ قَالُوا: لَا أَيْ رَبِّ، قَالَ: فَكَيْفَ لَوْ رَأَوْا جَنَّتِي! قَالُوا: وَيَسْتَجِيرُونَكَ، قَالَ: وَمِمَّ يَسْتَجِيرُونَي؟ قَالُوا: مِنْ نَارِكَ يَا رَبِّ، قَالَ: وَهَلْ رَأَوْا نَارِي؟ قَالُوا: لَا، قَالَ: فَكَيْفَ لَوْ رَأَوْا نَارِي! قَالُوا: وَيَسْتَغْفِرُونَكَ، قَالَ (1) فَيَقُولُ: قَدْ غَفَرْتُ لَهُمْ، وأَعْطَيْتُهُمْ مَا سَأَلُوا، وَأَجَرْتُهُمْ مِمَّا اسْتَجَارُوا، قَالَ(1) يَقُولُونَ: رَبِّ فِيهِمْ فُلَانٌ، عَبْدٌ خَطَّاءٌ إِنَّمَا مَرَّ فَجَلَسَ مَعَهُمْ، قَالَ(1): فَيَقُولُ: وَلَهُ غَفَرْتُ؛ هُمْ الْقَوْمُ، لَا يَشْقَى بِهِمْ جَلِيسُهُمْ"

رواه مسلم وكذلك البخاري والترمذي والنسائي


हिंदी:-

अबू हुरैरा(रज़िअल्लाहु अन्हु) ने बयान किया कि रसूलअल्लाह(सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
 
अल्लाह (सुब्हानहु व तआला) के पास बहुत फरिश्ते हैं जो उन सभाओं(महफिलों) की तलाश में घूमते हैं जिनमें अल्लाह का नाम लिया जा रहा हो, वे उनके साथ बैठते हैं और अपने पंखों को एक दूसरे के चारों ओर मोड़ लेते हैं, तो जो भी उन फरिश्तों के और सबसे निचले आसमान के बीच होता है उसे घेर लेते हैं।  जब मजलिस(सभा) के लोग जाने लगते हैं, तो फरिश्तें आसमानों की ओर चल देते हैं। तो उन्होंने (पैगंबर (ﷺ)) ने फरमाया: फिर अल्लाह(अज्ज व जल्ल) उनसे पूछते हैं - [हालांकि] वह उनके बारे में सबसे ज्यादा जानते हैं: तुम कहाँ से आए हो?  और वे कहते हैं: हम पृथ्वी(जमीन) पर आपके कुछ सेवकों (बंदों) के पास से आए हैं: वे आपकी अज़मत बयान कर रहे थे(सुब्हान अल्लाह); वे आपकी बडाई बयान कर रहे थे (अल्लाहु अकबर); और इस बात की गवाही दे रहे थे कि अल्लाह के सिवा और कोई (माबूद)इबादत के लायक नहीं (ला इलाहा इल्लल्लाह); और आपकी तारीफ बयान कर रहे थे (अल-हम्दु लिल्लाह) और आपसे आपके एहसान की मांग कर रहे थे। अल्लाह (सुब्हानहु व तआला) कहते हैं: "और वे मुझसे क्या माँगते हैं"?  फरिश्तों ने कहा: "वे आपसे आपकी जन्नत मांगते हैं"। अल्लाह(सुब्हानहु व तआला) कहते हैं:"और क्या उन्होंने मेरी जन्नत देखी है"? फरिश्ते कहते हैं: नहीं, ऐ रब।  तो अल्लाह(सुब्हानहु व तआला) कहते हैं: "और क्या होता अगर उन्होंने मेरी जन्नत देखी होती"! फिर फरिश्ते कहते हैं:"और वे आपसे आपकी पनाह माँगते हैं"। अल्लाह(सुब्हानहु व तआला) कहते हैं मुझसे किस बात से हिफाज़त(पनाह) माँगते हैं? फरिश्तें कहते हैं: आपकी जहन्नम से, ऐ रब। अल्लाह(सुब्हानहु व तआला) कहते हैं:"और क्या उन्होंने मेरी जहन्नम की आग देखी है"?  फरिश्तें कहते हैं:"नहीं,ऐ रब"। तो अल्लाह(सुब्हानहु व तआला) कहते हैं: "और क्या होता अगर उन्होंने मेरी जहन्नम की आग देखी होती"! फिर फरिश्तें कहते हैं: और वे आपसे माफी(क्षमा) मांगते हैं (अस्तगफिरुल्लाह)।  उन्होंने (पैगंबर (ﷺ)) ने फरमाया: तब अल्लाह(सुब्हानहु व तआला) कहते हैं: " मैंने उन्हें माफ कर दिया और जो भी उन्होंने मांगा मैंने उन्हें वह दिया, और जिससे उन्होंने मेरी पनाह मांगी मैंने उससे उनकी हिफाजत की।  उन्होंने (पैगंबर (ﷺ)) ने फरमाया कि फरिश्ते कहते हैं: ऐ रब, उस समय फलाना-फलाना, जो बहुत गुनहगार बंदा है, वहांँ से बस गुजर रहा था और उनके साथ बैठ गया।  उन्होंने (पैगंबर (ﷺ)) ने फरमाया: तब अल्लाह(सुब्हानहु व तआला) कहते हैं: ": और उसे भी मैंने माफ कर दिया, जो ऐसे लोगों के साथ बैठता है वह दुखी नहीं होगा।

यह हदीस अल बुखारी, अल मुस्लिम, अत्-त्रिमिजी और अन-नसाई ने बयान की है।


और अल्लाह बेहतर जानते हैं।

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